मातृमंदिर

 

 मातृमंदिर मनुष्य की पूर्णता की अभीप्सा के लिए भगवान् के उत्तर का प्रतीक बनना चाहता हैं ।

 

   प्रगतिशील मानव एकता में अभिव्यक्त होते हुए भगवान् के साथ ऐक्य ।

 

 १४ अगस्त, १९७०

 

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 मातृमंदिर श्रीअरविन्द की शिक्षा के अनुसार 'वैश्व जननी ' का प्रतीक बनना चाहता है ।

 

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 मातृमंदिर ओरोवील की आत्मा होगा ।

 

   जितनी जल्दी आत्मा आ जाये, उतना ही अधिक अच्छा, सभी के लिए, विशेषकर ओरोवीलवासियो के लिए ।

 

१५ नवम्बर, १९७०

 

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मातृमंदिर के निर्माण के लिए क्या केवल ओरोवीलवासी काम करेंगे या वेतन पाने वाले कर्मचारी, और दूसरे समीचीनता भी करेंगे?

 

 ज्यादा अच्छा होगा कि कार्य की व्यवस्था वेतन-भोगी कर्मचारियों के बिना हो ताकि हर परिस्थिति में काम को जारी रखने की निश्चिति बनी रहे ।

 

१६ फरवरी, १९७२

 

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     (मातृमंदिर की नींव रखने के समय दिया नया संदेश )

 

मातृमंदिर भगवान् के प्रति ओरोवील की अभीप्सा का जीवंत प्रतीक हो ।

 

२१ फरवरी, १९७१

 

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     ( मातृमंदिर  का काम शुरू पर गया संदेश)

 

 सहयोग का भ्रातृसंघ ।

 

   आनन्द और 'प्रकाश' मे 'एकता' के प्रति अभीप्सा ।

 

आशीर्वाद ।

 

१४ मार्च, १९७१

 

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 हम निर्माण-काल में हैं । यह अत्यावश्यक है कि जो ओरोवीलवासी 'सेंटर' में रहते हैं वे मातृमंदिर के निर्माण के लिए कार्य करें ।

 

    जो लोग मातृमंदिर के लिए काम नहीं करना चाहते उन्हें 'सेंटर' में नहीं रहना चाहिये ।

 

१० अप्रैल, १९७१

 

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मातृमंदिर सीधा भगवान् के प्रभाव में है और निश्चय ही हम अपने- आप चीजों को जैसे व्यवस्थित करते उसकी अपेक्षा वे ज्यादा अच्छी तरह करते है !

अक्तूबर, १९७१

 

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 केवल एक ही मातृमंदिर है, ओरोवील का मातृमंदिर ।

 

  दूसरों का कुछ और नाम होना चाहिये ।

 

५ अक्तूबर, १९७१

 

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 इमारत की सुरक्षा और मजबूती व्यक्तिगत प्रश्नों से पहले आनी चाहिये ।

 

     सभी चीजें सामंजस्यपूर्ण हों, इसका भार मैं तुम्हारे ऊपर सौंपती हूं ।

 

२० अक्तूबर, १९७१

 

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 क्या आप जिस तरह से ' का निर्माण करवाना ' उसके बारे में कुछ विस्तार से ' ताकि अन्दर और जंघाएँ न पैदा और हम - विश्वस्त हृदय के साध उसका निर्माण कर सकें ?

 

 मजबूती, सुरक्षा, दृढ़ता, सामंजस्यपूर्ण संतुलन ।

 

     नींव विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है और उसका काम विशेषज्ञों के दुराहोना चाहिये ।

 

हर शुभचिन्तक के लिए स्थान है, और उनके लिए जो अपनी पूरी सचाई और सरलता के साथ अपने काम को समर्पित करना चाहते हैं, उन्हें उपयोगी रूप सें काम में लगाये रखने के लिए पर्याप्त काम है ।

 

३ नवम्बर, १९७१

 

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     (मातृमंदिर  के गोले के चार आधारस्तंभों के शुरू करने के समय दिया गया संदेश )

 

 ओरोवील प्रगतिशील एकता का प्रतीक हो ।

 

      और इसे चरितार्थ करने का सबसे अच्छा तरीका है कार्य ओर भावनाओं में, समस्त जीवन के समर्पण में ' भागवत पूर्णता ' के प्रति अभीप्सा की एकता ।

 

२१ फरवरी १९७२

 

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   (चार स्तंभों के अर्थ )

 

उत्तर    महाकाली     पूरब     महालक्ष्मी   

दक्षिण    महेश्वरी     पश्चिम   महासरस्वती

 

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       ( भूमिगत बारह कक्षों के नाम जो मातृमंदिर की नींव में बनेगा ) '

 

सचाई ', ' नम्रता ', ' कृतज्ञता ', ' अध्यवसाय ', ' अभीप्सा ', ' ग्रहणशीलता ', ' प्रगति ', ' साहस ', ' भद्रता ', ' उदारता ', ' समता ', ' शांति ' ।

 

जुलाई १९७२

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    ( मातृमंदिर के चारों ओर के बारह बग़ीचों के नाम )

 

' सत् ', ' चित्त ', ' आनन्द ', ' प्रकाश ', ' जीवन ', ' शक्ति ', ' वैभव ', ' उपयोगिता ', ' प्रगति ', ' यौवन ', ' सामंजस्य ', ' पूर्णता ' ।

 

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    ( मातृमंदिर  के आधार के फ़र्श की काक्रीटिंग के समय दिया गया संदेश )

 

 आओ, हम सब 'भागवत सत्य' की अभिव्यक्ति के लिए बढ्ती हुई सचाई के साथ काम करें।

 

३ मई, १९७२

 

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    (श्रीअरविन्द की जन्य-शताब्दी के पहले दिन के कार्यकर्ताओं को दिया नया संदेश )

 

 सबके लिए सद्भावना और शांति ।

 

१५ अगस्त, १९७२

 

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